Monday, January 31, 2011

ऐसा ही है

ये जमाने कि फ़ितरत है
कभी हँसानें की
कभी रुलाने की
कभी उठाने कि
तो कभी गिराने कि
रख होसला इबादत कर
आदत पड जायेगी
तुझे भी
जनाजे से पहले
मुँसकुराने कि

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रंग ज़िन्दगी के

मायुस ना हो
ये जो तेरी ज़िन्दगी मे रंग है
ये असली है.. ये हल्के नही पडेंगे
अक्सर दीपावली पर रंग करवाते है घर मे
पर आज भी देखता हुँ, तो सोचता हुँ
इस ज़िन्दगी के दीपावली कब आयेगी
क्या कभी मेरे अरमान नये कपडे पहनेगे
आज भी समय कि फ़टी चादर औड लेता हुँ
मैं अक्सर
जिन्दगी के रंग ज्यादा अच्छे होते है
वो हल्के नही पड्ते
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अजीब है पर सच है

जब तक इन्सान ज़िन्दा रहता है
उससे पीछे खिचा जाता है और नीचे गिराया जाता है
और जब मर जाता है
तो उससे उपर उठाया जाता है और आगे बडाया जाता है
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