Wednesday, July 20, 2011

ज़िन्दगी

"ज़िन्दगी कि दौड मे गिर गया हुँ मैं
चोट गहरी है
बहुत दर्द है अभी इस घाँव मे,

यु साँस चुरायी ज़िन्दगी ने
मानो कुछ था ही नही
इस शरीर मे बस धडकन है
कपकपाति हुइ

युँ चँद करीबी चिरांगो के बुझने से हुआ है अन्धेरा
ज़िन्दगी मे
खुद को रोश्न करने का वक्त-ए-यार लगता है"
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