Friday, May 11, 2018

मैं बिक गया हूँ


मैं बिक गया हूँ
कंपनी की सैलरी के लिए
ज़िन्दगी की ज़रूरतों के लिए
सामाजिक मजबूरियों के लिए
वर्तमान की भरपाई के लिए
भविष्य की तुरपाई के लिए
मैं बिक गया हूँ

रोज़ एक ही रास्ते पर चलता हूँ
और फिर भी खो जाता हूँ
मैं इतना भटकता हूँ  हर रोज़
की  घर पहुंच जाता हूँ
मैं उसी नशे में चूर हो जाता हूँ
जिससे रोज़ निकलना चाहता हूँ
मैं रोज़ मरता हूँ फिर भी
पता नहीं कैसे रोज़ ज़िंदा हो जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं भूल गया हूँ
मैं कौन हूँ
मैं रोज़ किसी और को जीता हूँ
मैं जानते हुए भी अनजान बना रहता हूँ
मैं जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट ले आता हूँ
मैं ना चाहते हुए भी रोज़ हाथ मिलता हूँ
मैं नकली हूँ और सस्ता भी
इसलिए रोज़ बिक जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं बिक गया हूँ
किसी को ख़ुश करने के लिए
किसी को जवाब देने के लिए
खुदका भविष्य बनाने के लिए
सिर्फ कहानी में पात्र निभाने के लिए

मैं घंटों ख़ुद को
सुनसान गलियों में छोड़ आता हूँ
ख़ुद से सवाल जवाब लड़ाता हूँ
हर रोज़ फ़ैल हो जाता हूँ
रोज़ किसी की स्कीम का
हिस्सा बन जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं बिक गया हूँ
भविष्य में खुशियाँ लाने के लिए
ख़ुदका एक मकान बनाने के लिए
एक ज़िम्मेदार इंसान बनने के लिए
अपनी ख्वाईशो को पूरा करने के लिए
मैं बिक गया हूँ

मेरे शरीर का कोई न कोई पुर्जा
हर रोज़ मुझ से लड़ता रहता है
वो थक गया है ये बात भी कहता है
मैं उसे घसीट कर रोज़ साथ में लाता हूँ
मैं खुदका भी नहीं हूँ, ये बात उसे समझाता हूँ
आज ख़ुश नहीं पर
कल को खुशहाल बनाना चाहता हूँ
जो कल होगा भी या नहीं, पता नहीं लेकिन 
मैं कल का इंतज़ाम आज करना चाहता हूँ
मैं बिक गया हूँ


मैं चलती हुई घडी का काँटा हूँ
मैं हर पल में थोड़ा थोड़ा बीत जाता हूँ
वक़्त की फितरत है मुझ में
मैं लौटकर कभी नहीं आता हूँ
मैं खुद को भूल जाता हूँ
हर छोटे बड़े प्यादों से मात खाता हूँ
मैं किसी और की चाल हूँ
मैं हर रोज़ मरकर उठ जाता हूँ

मैं बिक गया हूँ

© Copyright rajnishsongara
Photo Credits: © Tales By Aseem (https://talesbyaseem.com/)

Sunday, May 6, 2018

मुरगन गारू- 'मैं अपना इस्तीफा अपनी पॉकेट में लेकर घूमता हूँ'


7/11/2017
मुरगन गारू

उम्र करीब 42 से 45 के करीब
बाल थोड़े घुंघरू वाले
कर 5 फ़ीट 4 या 5 इंच
बॉडी नार्मल, मस्कुलर भी बोल सकते है
हल्का सा पेट बहार
चश्मा लगाते है
अधिकतर पेंट शर्ट पहनते है
पेरो में स्पोर्ट्स शूज

उनसे बात करके मुझे अधिकतर एक ही बात ज्यादा सुनने को मिली की उनके पिताजी उनके बहुत कम उम्र में छोड़ कर चले गए थें, बचपन से ही उनके ऊपर बहुत ज़िम्मेदारी था | पिताजी उनके सरकारी कंपनी में फाइनेंस डिपार्टमेंट में काफी बड़े पद पर थे, उनके पिताजी की काफी जान पहचान थी जिसके चलते मुरगन गारू की पहली नौकरी भी लगी थी और वो बता रहे थे की उस कंपनी का मैनेजर जो मुरगन गारू के पिताजी का दोस्त था, वो मुरगन गारू को उनके पिताजी के नाम से ही पुकारता था |

मुरगन गारू के शायद २ बच्चे है और अभी SAP सप्लाई मैनेजमेंट मॉडल में मुरगन गारू का काम है |

सच कहु तो मुझे बड़े अजीब लगते है ..कभी हाय हैलो करते है कभी नहीं करते है, हमेशा अपनी धुन में ही चलते है, हम रास्टाट रैलवे स्टेशन से चलते हुए ऑफिस तक हर सुबह अधिकतर साथ जाते है | उनको कोई मतलब नहीं होता की कौन साथ है कौन नहीं बस अपनी धुन में चलते रहते है | अधिकतर अपने मोबाइल में व्हाट्स अप्प उसे करते दिख जाते है और मुस्कुराते रहते है |


रास्टाट रेलवे स्टेशन से ऑफिस जाते वक़्त रास्ते का दृश्य  |


व्हाट्स अप्प से याद आया ऑफिस टीम के व्हाट्स अप्प ग्रुप में वो अधिकतर बिलकुल स्ट्रैट फॉरवर्ड रिप्लाई करते हुए दीखते है | उनकी बातों से लगता है की वो बहुत टैलेंटेड है अगर कंपनी निकाल भी दे तो वो जॉब  2 मिनट में ढूंढ लेंगे | एक बार तो ये भी बोले की 'मैं अपना इस्तीफा अपनी पॉकेट में लेकर घूमता हूँ' |

मेरी आदत है हमेशा लोगों के बारे में जानने का इसलिए उनसे भी कुछ न कुछ पूछता रहता हूँ ताकि उनको और पड़ सकू, उनके बारें में और जान सकू | उनका ये भी कहना है की अगर कोई इंसान अपनी सिटी से दूसरी सिटी में शिफ्ट नहीं हो सकता तो उससे IT में जॉब नहीं करनी चाहिए , मुझे देखो में शादी शुदा हूँ फिर भी सब छोड़ के जर्मनी आया हूँ |

वो रहने वाले चेन्नई से और चेन्नई की सरकार को खूब कोसते है, कहते है की चेन्नई की गवर्नमेंट ने लोगो को फ्री की चीज़े बाट बाट कर लोगों की आदत खराब कर दी | और हां नार्थ इंडियंस की थोड़ी बड़ाई इसलिए करते है क्योकि वो नार्थ से काम करने साउथ में बड़े आसानी से आ जाते है |

उनको जर्मनी का लोकल फ़ूड अच्छा लगता है, लंच में वो ऑफिस के केफेटेरिआ में ही खाना खाते है और मुझे अधिकतर बोलते है 'आई लव दिस फ़ूड ' | मैं भी उनको बोलता हूँ हाँ बहुत हेअल्थी है | हालाँकि पसंद तो मुझे भी खूब है लेकिन 5-7 युरोस खर्च करने पर भी इतना खाना नहीं  मिलता की मेरा पेट भरे इसलिए मैंने आजकल कैफेटेरिया में खाना बंद कर दिया, कभी कभी खा लेता हूँ | दरसल आजकल मैं डेली 1.80 यूरो का सलाद पैक कर लेता है, एक बॉक्स रहता है उसमे जितना भर सको भर लो पैसा 1.80 यूरो ही लगेगा इसलिए में जितना ज्यादा हो सके पैक कर लेता हूँ और साथ में घर से कुछ ले जाता हूँ |

खेर, मुरगन गारू आज बता रहे थे की ऑफिस से घर जाने के बाद वो बहुत बोर हो जाते है और उनके पास करने को कुछ नहीं होता | मैंने सलाह भी दी की आप जो भी बचपन में सपना देखते थे,  जैसे कुछ करना है या कुछ चाहते थे वो क्यों नहीं करते | तो मुरगन गारू बोले - मैंने बताया ना बचपन में सपने जैसा कुछ था ही नहीं और कारण था पिताजी की मौत जल्दी हो जाना और पूरा प्रेशर मुरगन गारू पर आजाना | आप ये मत सोचियेगा की 'गारू' उनका लास्ट नाम है, दरअसल तेलुगु में गारू शब्द सम्मान देने के लिए उसे किया जाता है बिलकुल जैसे हम किसी के नाम के आगे 'जी' लगाते है |

मुरगन गारू मुझे थोड़े अलग लगते है लेकिन शायद उन्ही को मालूम है उन्होंने कितनी मुश्किलें देखी होंगी या अभी किस परिस्थिति में है | कितनी मेहनत करके यहाँ तक पहुँचे होंगे | सच तो ये है की इतनी आसान बात नहीं है की इतनी काम उम्र में अपने पिताजी को खोना और फिर इस बात को स्वीकार कर पाना, शायद इसी लिए मुरगन गारू ने शायद ज़िन्दगी को थोड़ा ज्यादा टटोल रखा है |

मुरगन गारू की ये बात जानकार मुझे भी अपने दादाजी की याद आ गयी थी जो हमारे परिवार को, पापा, चाचा को  बहुत जल्दी छोड़कर चले गए थे | यकीन नहीं होता या फिर मैं सोच भी नहीं सकता की पापा, चाचा ने कितनी मेहनत की है हम सब भाइयों को अपने अपने मक़ाम तक पहुंचाने में और आज भी मेहनत कर रहे है  जवाब बड़ा सिंपल है मेहनत |

बस मेहनत और ईमानदारी से ही सब कुछ होता है ये बात तो मैंने बहुत अच्छे से सिख ली है |

भगवान् मुरगन गारू को बहुत खुशियाँ दे ...और मेरे पापा, चाचा और पूरे परिवार को बहुत सुख और ढेर सारी खुशियाँ |

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