Friday, May 11, 2018

मैं बिक गया हूँ


मैं बिक गया हूँ
कंपनी की सैलरी के लिए
ज़िन्दगी की ज़रूरतों के लिए
सामाजिक मजबूरियों के लिए
वर्तमान की भरपाई के लिए
भविष्य की तुरपाई के लिए
मैं बिक गया हूँ

रोज़ एक ही रास्ते पर चलता हूँ
और फिर भी खो जाता हूँ
मैं इतना भटकता हूँ  हर रोज़
की  घर पहुंच जाता हूँ
मैं उसी नशे में चूर हो जाता हूँ
जिससे रोज़ निकलना चाहता हूँ
मैं रोज़ मरता हूँ फिर भी
पता नहीं कैसे रोज़ ज़िंदा हो जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं भूल गया हूँ
मैं कौन हूँ
मैं रोज़ किसी और को जीता हूँ
मैं जानते हुए भी अनजान बना रहता हूँ
मैं जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट ले आता हूँ
मैं ना चाहते हुए भी रोज़ हाथ मिलता हूँ
मैं नकली हूँ और सस्ता भी
इसलिए रोज़ बिक जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं बिक गया हूँ
किसी को ख़ुश करने के लिए
किसी को जवाब देने के लिए
खुदका भविष्य बनाने के लिए
सिर्फ कहानी में पात्र निभाने के लिए

मैं घंटों ख़ुद को
सुनसान गलियों में छोड़ आता हूँ
ख़ुद से सवाल जवाब लड़ाता हूँ
हर रोज़ फ़ैल हो जाता हूँ
रोज़ किसी की स्कीम का
हिस्सा बन जाता हूँ
मैं बिक गया हूँ

मैं बिक गया हूँ
भविष्य में खुशियाँ लाने के लिए
ख़ुदका एक मकान बनाने के लिए
एक ज़िम्मेदार इंसान बनने के लिए
अपनी ख्वाईशो को पूरा करने के लिए
मैं बिक गया हूँ

मेरे शरीर का कोई न कोई पुर्जा
हर रोज़ मुझ से लड़ता रहता है
वो थक गया है ये बात भी कहता है
मैं उसे घसीट कर रोज़ साथ में लाता हूँ
मैं खुदका भी नहीं हूँ, ये बात उसे समझाता हूँ
आज ख़ुश नहीं पर
कल को खुशहाल बनाना चाहता हूँ
जो कल होगा भी या नहीं, पता नहीं लेकिन 
मैं कल का इंतज़ाम आज करना चाहता हूँ
मैं बिक गया हूँ


मैं चलती हुई घडी का काँटा हूँ
मैं हर पल में थोड़ा थोड़ा बीत जाता हूँ
वक़्त की फितरत है मुझ में
मैं लौटकर कभी नहीं आता हूँ
मैं खुद को भूल जाता हूँ
हर छोटे बड़े प्यादों से मात खाता हूँ
मैं किसी और की चाल हूँ
मैं हर रोज़ मरकर उठ जाता हूँ

मैं बिक गया हूँ

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Photo Credits: © Tales By Aseem (https://talesbyaseem.com/)

Sunday, May 6, 2018

मुरगन गारू- 'मैं अपना इस्तीफा अपनी पॉकेट में लेकर घूमता हूँ'


7/11/2017
मुरगन गारू

उम्र करीब 42 से 45 के करीब
बाल थोड़े घुंघरू वाले
कर 5 फ़ीट 4 या 5 इंच
बॉडी नार्मल, मस्कुलर भी बोल सकते है
हल्का सा पेट बहार
चश्मा लगाते है
अधिकतर पेंट शर्ट पहनते है
पेरो में स्पोर्ट्स शूज

उनसे बात करके मुझे अधिकतर एक ही बात ज्यादा सुनने को मिली की उनके पिताजी उनके बहुत कम उम्र में छोड़ कर चले गए थें, बचपन से ही उनके ऊपर बहुत ज़िम्मेदारी था | पिताजी उनके सरकारी कंपनी में फाइनेंस डिपार्टमेंट में काफी बड़े पद पर थे, उनके पिताजी की काफी जान पहचान थी जिसके चलते मुरगन गारू की पहली नौकरी भी लगी थी और वो बता रहे थे की उस कंपनी का मैनेजर जो मुरगन गारू के पिताजी का दोस्त था, वो मुरगन गारू को उनके पिताजी के नाम से ही पुकारता था |

मुरगन गारू के शायद २ बच्चे है और अभी SAP सप्लाई मैनेजमेंट मॉडल में मुरगन गारू का काम है |

सच कहु तो मुझे बड़े अजीब लगते है ..कभी हाय हैलो करते है कभी नहीं करते है, हमेशा अपनी धुन में ही चलते है, हम रास्टाट रैलवे स्टेशन से चलते हुए ऑफिस तक हर सुबह अधिकतर साथ जाते है | उनको कोई मतलब नहीं होता की कौन साथ है कौन नहीं बस अपनी धुन में चलते रहते है | अधिकतर अपने मोबाइल में व्हाट्स अप्प उसे करते दिख जाते है और मुस्कुराते रहते है |


रास्टाट रेलवे स्टेशन से ऑफिस जाते वक़्त रास्ते का दृश्य  |


व्हाट्स अप्प से याद आया ऑफिस टीम के व्हाट्स अप्प ग्रुप में वो अधिकतर बिलकुल स्ट्रैट फॉरवर्ड रिप्लाई करते हुए दीखते है | उनकी बातों से लगता है की वो बहुत टैलेंटेड है अगर कंपनी निकाल भी दे तो वो जॉब  2 मिनट में ढूंढ लेंगे | एक बार तो ये भी बोले की 'मैं अपना इस्तीफा अपनी पॉकेट में लेकर घूमता हूँ' |

मेरी आदत है हमेशा लोगों के बारे में जानने का इसलिए उनसे भी कुछ न कुछ पूछता रहता हूँ ताकि उनको और पड़ सकू, उनके बारें में और जान सकू | उनका ये भी कहना है की अगर कोई इंसान अपनी सिटी से दूसरी सिटी में शिफ्ट नहीं हो सकता तो उससे IT में जॉब नहीं करनी चाहिए , मुझे देखो में शादी शुदा हूँ फिर भी सब छोड़ के जर्मनी आया हूँ |

वो रहने वाले चेन्नई से और चेन्नई की सरकार को खूब कोसते है, कहते है की चेन्नई की गवर्नमेंट ने लोगो को फ्री की चीज़े बाट बाट कर लोगों की आदत खराब कर दी | और हां नार्थ इंडियंस की थोड़ी बड़ाई इसलिए करते है क्योकि वो नार्थ से काम करने साउथ में बड़े आसानी से आ जाते है |

उनको जर्मनी का लोकल फ़ूड अच्छा लगता है, लंच में वो ऑफिस के केफेटेरिआ में ही खाना खाते है और मुझे अधिकतर बोलते है 'आई लव दिस फ़ूड ' | मैं भी उनको बोलता हूँ हाँ बहुत हेअल्थी है | हालाँकि पसंद तो मुझे भी खूब है लेकिन 5-7 युरोस खर्च करने पर भी इतना खाना नहीं  मिलता की मेरा पेट भरे इसलिए मैंने आजकल कैफेटेरिया में खाना बंद कर दिया, कभी कभी खा लेता हूँ | दरसल आजकल मैं डेली 1.80 यूरो का सलाद पैक कर लेता है, एक बॉक्स रहता है उसमे जितना भर सको भर लो पैसा 1.80 यूरो ही लगेगा इसलिए में जितना ज्यादा हो सके पैक कर लेता हूँ और साथ में घर से कुछ ले जाता हूँ |

खेर, मुरगन गारू आज बता रहे थे की ऑफिस से घर जाने के बाद वो बहुत बोर हो जाते है और उनके पास करने को कुछ नहीं होता | मैंने सलाह भी दी की आप जो भी बचपन में सपना देखते थे,  जैसे कुछ करना है या कुछ चाहते थे वो क्यों नहीं करते | तो मुरगन गारू बोले - मैंने बताया ना बचपन में सपने जैसा कुछ था ही नहीं और कारण था पिताजी की मौत जल्दी हो जाना और पूरा प्रेशर मुरगन गारू पर आजाना | आप ये मत सोचियेगा की 'गारू' उनका लास्ट नाम है, दरअसल तेलुगु में गारू शब्द सम्मान देने के लिए उसे किया जाता है बिलकुल जैसे हम किसी के नाम के आगे 'जी' लगाते है |

मुरगन गारू मुझे थोड़े अलग लगते है लेकिन शायद उन्ही को मालूम है उन्होंने कितनी मुश्किलें देखी होंगी या अभी किस परिस्थिति में है | कितनी मेहनत करके यहाँ तक पहुँचे होंगे | सच तो ये है की इतनी आसान बात नहीं है की इतनी काम उम्र में अपने पिताजी को खोना और फिर इस बात को स्वीकार कर पाना, शायद इसी लिए मुरगन गारू ने शायद ज़िन्दगी को थोड़ा ज्यादा टटोल रखा है |

मुरगन गारू की ये बात जानकार मुझे भी अपने दादाजी की याद आ गयी थी जो हमारे परिवार को, पापा, चाचा को  बहुत जल्दी छोड़कर चले गए थे | यकीन नहीं होता या फिर मैं सोच भी नहीं सकता की पापा, चाचा ने कितनी मेहनत की है हम सब भाइयों को अपने अपने मक़ाम तक पहुंचाने में और आज भी मेहनत कर रहे है  जवाब बड़ा सिंपल है मेहनत |

बस मेहनत और ईमानदारी से ही सब कुछ होता है ये बात तो मैंने बहुत अच्छे से सिख ली है |

भगवान् मुरगन गारू को बहुत खुशियाँ दे ...और मेरे पापा, चाचा और पूरे परिवार को बहुत सुख और ढेर सारी खुशियाँ |

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Sunday, April 29, 2018

जर्मनी, लड़कियाँ और हिंदुस्तान जाने की इच्छा


7/10/17
वक़्त तीन बजकर छतीस मिनट ...

मैं ऑफिस में बैठा निर्मल वर्मा की दूसरी दुनिया पढ़कर कुछ ऑफिस का काम करना चाह रहा था लेकिन मेरा लिखने का मन हुआ तो लिखना शुरू कर दिया हालांकि मेरे पास कुछ ज्यादा काम नहीं है ...जो है वो कर दिया |

अभी प्रोजेक्ट की शुरुआत है तो ज्यादा काम नहीं होता और जो होता है वो मेरी पेंडिंग रखने की आदत नहीं है ...बचपन से ही ऐसा है मुझे काम कल पर छोड़ने  की आदत नहीं है, ये आदत शायद मुझे मेरी माँ से मिली है | इतनी सारी अच्छी आदतें है जो मुझे मम्मी और पापा से मिली है शायद उसी का नतीजा है आज मैं जहाँ हूँ और जैसा हूँ खुश हूँ |

आज एक बात और अच्छी ये हो गयी की जिस नए घर में मुझे शिफ्ट होना है उसके लैंडलॉर्ड का भी ईमेल आ गया और मैंने सारे ज़रूरी डॉक्यूमेंट उन्हें भेज दिए ताकि वो मेरे लिए घर का कॉन्ट्रैक्ट बना दे | जर्मनी में लैंग्वेज डिफरेंस होने के कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और घर ढूढ़ना तो बहुत मुश्किल काम है, हालांकि ऊपर वाला मेरी हमेशा मदद करता है और मेरा काम हो जाता है | कभी कभी मुझे काफी अच्छे लोग भी मिल जाते है जो मुझे जानते नहीं लेकिन मेरी मदद करने को तैयार हो जाते है |ये सब देखकर लगता है शायद मैंने ज़रूर कुछ तो अच्छे कर्म किये होंगे जो भगवान् मेरी मदद के लिए किसी न किसी को भेज देता है |

मैं ऊपर वाले का हर दिन शुक्रा अदा करता हूँ की उसने मुझे जितना भी नवाज़ा उसके लिए हलाकि इतनी मेरी औकात नहीं या फिर ये कह सकता हूँ की कभी सोचा नहीं था लाइफ में इतना कुछ हो जाएगा | कभी कभी लगता है की ये सब लिखा हुआ है जो होना ही है वार्ना कहा सोचा था की इतने अलग अलग किस्म लोगों से मिलूंगा, इतनी अलग अलग तरीके की साइकल्स देखूँगा, इतने अलग और विचित्र दिखने वाले लोगों से भी मुलाक़ात होगी |

यहाँ जर्मनी में बिलकुल अलग माहौल है, बड़ा अच्छा लगता है देखकर, इतनी सुंदर लड़किया मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखी और हर लड़की आपको अपने बॉय फ्रेंड के साथ प्यार, किस करते हुए दिख जाएंगी, बहुत अच्छा लगता है देखकर की यहाँ प्यार कितना खुल्ला है | सही कहूं तो देखकर मेरा दिमाग खराब हो जाता है और मन कहता है मेरी गर्ल फ्रेंड क्यों नहीं है!!!  सच्ची कहूं तो बहुत ख़ुशनुमा पल लगता है जब उनको देखता हूँ तो, कितनी सचाई के साथ एक दुसरे को किस करते है बिलकुल सच्चा प्यार | यहाँ की ख़ास बात ये है की सब एक दूसरे की प्राइवेसी का सम्मान करते है | मैं अधिकतर ऐसे प्रेमी जोड़ों ऑब्सेर्वे करता रहता हूँ | लाइफ में ऐसी बहुत सी चीज़ें  है जो मैं ऑब्सेर्वे करता रहता हूँ लेकिन सामने वाले को महसूस नहीं होने देता |

खेर, अब मुझे सिर्फ नए घर में शिफ्ट होने का इंतज़ार है ताकि मैं फिर से जिम जा सकू और नए घर के पास में जो थिएटर है वह जाकर पूछ भी सकू अगर कोई थिएटर वर्कशॉप होती हो! अभी वैसे मेरा यहाँ कोई ख़ास दोस्त नहीं बना, मुझे अपने अंदर एक कमी नज़र आती है की मुझे हमेशा किसी का साथ चाहिए होता है यहाँ तक की खाने में भी अकेले खाने की आदत नहीं है | मुझे लगता है शायद बचपन से जॉइंट फॅमिली में रहने की वजह से मेरी अकेले रहने की आदत नहीं है और नए घर में कुल हम चार लोग रहेंगे तो मैं खुश भी हूँ की कोई तो मिलेगा बात करने को और 2 बातें नयी पता लगेगी | बस मुझे इंतज़ार है कोई ढंग का बंदा क्रिएटिव सा दोस्त बन जाए ताकी मैं साथ में घूमने चला जाऊ या फिर कुछ क्रिएटिव करना है तो वो भी कर सकू |

अंग्रेजी के कीबोर्ड में अंग्रेजी लिखने की आदत की वजह से बार बार पूर्ण विराम की जगह फुल स्टॉप लिख देता हूँ | मुझे कलम से लिखने की आदत नहीं है, कीबोर्ड पर मेरे विचार मेरी उंगलियों के साथ चलते है जिन्हे लिखने में मुझे बहुत आसानी होती है |  बिच बिच में इमेल्स भी चेक कर ले रहा हूँ ताकि काम कुछ छूटे ना |  अच्छा लग रहा है बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ |

सामने कॉफी मग और पानी का गिलास पड़ा है तो याद आया की जर्मनी की एक मस्त बात ये है की यहाँ पानी भी 4-5 तरीके का होता है | नार्मल वाटर, स्टिल वाटर, स्पार्कलिंग वाटर, कार्बोनेटेड वाटर और पता नहीं कौन कौन से, शुरू में मशीन से पानी लेते वक़्त में कार्बोनेटेड वाटर भी ले लेता था लेकिन ज्यादा पीना अच्छा नहीं है इसलिए अब नार्मल वाटर ले लेता हूँ ये कार्बोनेटेड वाटर बिलकुल दारू के साथ पिने वाले सोडा की तरह होता है |  यहाँ लोगो को कॉफी पीने की बहुत आदत है | वैसे तो मैं चाय भी नहीं पीता लेकिन आँखे खुली रखने के लिए आजकल कॉफ़ी पी लेता हूँ | दिन में खाना खाते ही नींद आती और रात में कितना भी खाना खालो लेकिन नींद नहीं आती शायद मुझे मेरा थिएटर बहुत याद आता है | बहुत मन करता है कुछ करू कुछ करू लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा, बस मैं तो जनवरी का इंतज़ार कर रहा हूँ ताकि कुछ बहाना बना कर यहाँ से निकल सकू | थोड़ा सा फाइनेंसियल सुप्पोर्ट मिल जाएगा और साथ में कुछ दूसरी यूरोपियन कन्ट्रीज भी देख लूंगा | और हां मेरा आसमान से गिरती हुई बर्फ देखने का बहुत मन है |



मुझे कभी कभी बहुत डर लगता है जब मैं बोलता हूँ की मेरा यहाँ रहने का बिलकुल मन नहीं है, ऐसे मौके भगवान् हर किसी को नहीं देता लेकिन क्या करू मुझे  बस लगता है की एक्टिंग करुँ थिएटर करुँ|



अब सोच में पड़ गया हूँ की आगे क्या लिखू, साथ में कण्ट्रोल C भी कर लेता हूँ ताकि एक दम से इतना लिखा सब कुछ डिलीट न हो जाए शायद यही डर मुझे ज़िन्दगी से भी लता है की इतनी मेहनत की है थिएटर में एक्टिंग में सब कुछ ख़त्म ना हो जाए इसलिए जितना जल्दी हो सके में हिंदुस्तान चले जाना चाहता हूँ |


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Tuesday, April 24, 2018

घर, हुक्का और मेरा डर

07/11/2017

वक्त रात के नौ बजकर फिफ्टी नाइन मिनट्स |

आज भी थोड़ी शर्म आती है मुझे, एक दम से ध्यान नहीं आता की फिफ्टी नाइन को हिंदी में क्या बोलते है |

मौसम बड़ा मस्त है, बहार बारिश हो रही है मैंने विंडो पूरी खोली हुई है, मस्त हवा आ रही है ठंडी ठंडी बड़ी मस्त लग रही है | आज पता नहीं क्यों लिखने का मन कर रहा है मतलब एक अलग ही मज़ा आ रहा है लिखने में |

वैसे मेरा अभी मेरे नए फ्लैट मेट्स के बारे में बताने का मन हो रहा है, मैं अभी जिस घर में रह रहा हूँ उसे छोड़ने की वजह घर में आये नए 2 फ्लैट मेट्स है, सबसे पहली बात तो घर में 1 वाशरूम और एक ही किचन है और 4 लोग, किचन का तो चलता है लेकिन वाशरूम की दिक्कत होगी ऐसा मुझे शुरू में लगा था लेकिन वो दिक्कत भी नहीं हुई | उससे बड़ी बात ये की मकान मालिक एक दम से 2 बन्दों को घर में ले आया बगैर बताये, ऊपर से दोनों लड़के सीरिया से है | सच बात तो ये है की मेरी सीरिया के नाम से बहुत फटती है  यहाँ तक की लास्ट टाइम लंदन से लौटते वक़्त मेरे मन में ऐसे ख़याल भी आ रहे थे की कही सीरिया और बाकि खतरनाक देशों के ऊपर से निकले तो कही ऊपर के ऊपर फ्लाइट गायब न हो जाए, लोल थोड़ा फनी है लेकिन सच है |

वैसे तो अभी तक ऐसी कोई दिक्कत नहीं हुई उन दोनों के साथ लेकिन फिर भी थोड़ा अजीब लगता है | सबसे पहले तो इन्हे इंग्लिश नहीं आती, जर्मन और अरेबिक आती है और मुझे जर्मन और अरेबिक नहीं आती तो बात करने में तो मुश्किल होती ही है और फिर हैरान तो मैं 4-5 तरीके के हुक्के देख कर रहे गया...हर फ्लेवर का अलग हुक्का और वो भी पूरे इंतज़ाम के साथ बिलकुल अरेबिक स्टाइल में | एक का नाम अब्दुल है और दुसरे का पता नहीं...जब बात अब्दुल से हुई तो भाई ने बताया वो हुक्के के बगैर रात में सो नहीं पाते और हाँ ये लोग हुक्के को शीशा बोलते है | बाकी और भी बड़ी अजीब अजीब सी चीजे पीते रहते है हालांकि अब्दुल भाई ने बताया जो ये ड्रिंक बनाकर पीते है उससे पेट साफ़ होता है और इस ड्रिंक का मसाला अर्जेंटीना का है बाकायदा मैंने पैकेट पर फ्रॉम अर्जेंटीना लिखा भी देखा |

वैसे तो मुझे नया घर लगभग मिल गया है जहाँ मुझे जल्द ही जाना है लेकिन फिर भी मुझे जो अजीब बात और डर लगता है वो ये की अब्दुल हर दुसरे दिन किसी नए बन्दे को घर में लाता है और हुक्का पिलाता है, कल ही एक लड़का लड़की का जोड़ा आया था हुक्का पीने | अब्दुल भाई ने फ्रूट वाली बास्केट उनके सामने रख दी बालकनी में और मस्त बड़ा वाला छाता धुप से बचने वाला खोल दिया, कोल्ड ड्रिंक्स सर्व की और हुक्का रेडी करने लगा | मुझे तो बड़ी हंसी आ रही थी, मैं मेरे इंडियन फ्लैट मेट (चौथा बंदा) से बोला प्रिंस भाई ये तो लग रहा है यही गोवा बनाएगा' मुझे खूब हसी आ रही थी, मैं और प्रिन्स किचन में खाना बना रहे थे |

एक तो ये खाना बनाना सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है...डेली ऑफिस से आओ फिर जिम जाओ और फिर खाना बनाओ..हालाँकि आजकल प्रिंस भी मुझे देख देखकर खाना बनाना सिख गया है, मेरे जिम से लौटने से पहले खाना रेडी कर लेता है मुझे बड़ा अच्छा लगता है | शुरुआत में मैं बनाया करता था लेकिन अब प्रिंस बनाकर रख देता है तो जिम से आकर सुकून मिल जाता है थोड़ा |

नमकीन की सब्जी मेरी नानी ने बनाना सिखाया था |


रोज़ रोज़ या तो दाल चावल या कभी चिकन या कभी राजमा ....यही सब खा खा कर परेशान हो गया हूँ, रोटी तो होती नहीं है कभी मन करता है तो ब्रेड से सब्जी खा लेता हूँ | यहाँ कार्ल्सरूहे में कुछ इंडियन रेस्टोरेंट है लेकिन उनकी हालत भी इंडिया जैसी ही हो रही है ... इंडिया जैसी इसलिए बोल रहा हूँ क्योकि अभी इंडिया की हालत शायद सच में सही नहीं है आज ही अमरनाथ जाते हुए यात्रियों पर आतंकवादियों द्वारा हमला किया गया | खेर इंडियन रेस्टोरेंट, जहाँ जाकर सबसे बड़ा अचम्बा तो तब लगा जब उन्होंने बताया की आटे की रोटी नहीं है, मैदा वाली है ..उसी समय मेरे ज़बान पर तीन लब्ज़ आये 'क्या चुतियापा है' खेर ये शब्द ज़बान से मन में चले गए और एक और अच्छी बात जहाँ तक मुझे ध्यान है की रेस्टोरेंट वाले भाईसाहब कार्ड से पेमेंट स्वीकार नहीं करते कैश लेते है,  मैंने सोचा वहा मोदी जी इंडिया को कैशलेस बना रहे है और यहाँ जर्मनी जो काफी डेवलप्ड है यहाँ ये भाईसाहब कार्ड स्वीकार नहीं कर रहे है, पता नहीं क्या रीज़न था |

दिन शनिवार था तो मैंने बहुत कण्ट्रोल करके चिकन नहीं खाया... हाँ वो थोड़ा माँ से ज्यादा प्यार करता हूँ ना तो उन्होंने मना किया हुआ है या ये कहलो की बचपन से ऐसे ही है की मंगलवार और शनिवार नॉन वेज नहीं खाएंगे .. साथ में एक साथी था उसने नॉन वेज खाया बोल रहा था की बकवास है उसका उलटी जैसा मन हो रहा है, मेरे मन में आया अच्छा हुआ मैंने नॉन वेज नहीं खाया वार्ना पाप भी लगता और बेकार भी...लोल | वैसे वेज भी इतना ख़ास नहीं था मुझे लंदन वाली पंजाबी आंटी की याद आगयी थी वो भी 1-2 दिन पुरानी सब्जी खिला देती थी और यहाँ रेस्टोरेंट की सब्जी भी वैसी ही लग रही थी पूरा मन खराब हो गया था हालांकि करीबन 10 यूरो दिए थे तो मैं तो कोशिश कर रहा था की कुछ तो खा लिया जाए पैसा दिया है |

बहुत प्यास लग रही है किचन से पानी भर कर लाता हूँ...अब्दुल भाई डाइनिंग टेबल पर ही बैठे है शायद अपने घर वालो से लाइव चैट कर रहे है, हॉल में मस्त हुक्के की खुशबू आ रही है | मुझे ऐसा लगा हुक्के का ये फ्लेवर शायद मैंने भी कभी इस्तेमाल किया  है | हाल ही में जर्मनी आने से पहले मुझे हुक्का बहुत पसंद आने लगा था एक तो मेरे खास अली भाई हुक्के के बड़े शौकीन है और दूसरी बात हैदराबाद वाले फ्लैट में आया मेरा नया रूम मेट शुभम हुक्का बड़ा मस्त बनाता था |

अभी कुछ दिन पहले अब्दुल भाई और उनका साथी  जिम में मिले थे अच्छे से हाथ मिलाकर हाल चाल पूछा, दोनों खुश लग रहे थे |

ख़ुदा सबको खुश रखे |

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Monday, April 23, 2018

ज़िन्दगी, एक किताब है



ज़िन्दगी, एक किताब है
हर दिन, एक पन्ना है
हर लाइन, बीतता हुआ घड़ी का एक एक घंटा है
हर शब्द, पल पल में घटती हुई ज़िन्दगी है

ज़िन्दगी, एक किताब है |

रोज़ खोलकर पढ़ लिया करो
कभी गलती से किसी लाइब्रेरी में चले गए तो
बहुत धूल चढ़जाएगी
और जो लगी हाथ किसी के
तो फिर या तो पढ़ लिए जाओगे
या पढ़ दिए जाओगे |

सबकी किस्मत उस किताब जैसी नहीं
जिसे पड़ने वाला 'ख़ुदा' संभाल कर रखे

और मुश्किल किताब को तब होती होगी जब
कोई उसमे फूल या ख़त रख देता होगा
हाँ बिलकुल उसी तरह जैसे कोई
हमारे ज़हन में कोई ख़ुद की ज़िन्दगी रख देता है

और हाँ तकियों की तरह
किताबों को भी बहुत कुछ पता होगा  5
लेकिन हम सिर्फ किताब को पढ़ते है
लिखने वाले को नहीं |

मैं लिखने वाले को पड़ना चाहता हूँ
मैं ख़ुदा को पड़ना चाहता हूँ,  ज़िन्दगी को नहीं |

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Photo Credits: © Tales By Aseem (https://www.facebook.com/aseemybphotography)

मैं ख़ुद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहता हूँ



थोड़ी देर के लिए मैं ख़ुद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहता हूँ  | ये बात कहते वक़्त वो इतना पीछे था की आगे आ भी जाता तब भी वो ख़ुद से पीछे ही रहता |  ठहर कर आस पास देखकर उसने कुछ समझना भी चाहा लेकिन बहुत सी चीज़े थी उसके ज़हन की तरफ आती हुई,  जिनसे वो लड़ रहा था | थकना लाज़मी था, वो बैठा और सोचता रहा लेकिन कुछ कर नहीं सका |

धीरे धीरे उसको ये बात समझ आ गयी थी की वक़्त तब ही ख़राब होता है जब आप या तो वक़्त से आगे निकलना चाहते या फिर वक़्त के पीछे रह जाओ, वक़्त के साथ साथ चलते रहना भी ज़िन्दगी की जीत है |

उसका मन दौड़कर जिस तरफ जाना चाहता था वहा भी वो नहीं था जिसे वो ढूंढ रह था ...जो भी हम ढूंढ रहे होते है वो जल्दी या देरी से नहीं वक़्त पर मिलता है |  उसकी अंतरआत्मा ने उसे काफी झंझोड़कर कर रखा हुआ था वो ख़ुद भी जानता था उससे गलती हुई है लेकिन हर वक़्त वो रास्ता ढूंढ रहा था उस गलती को मिटाने या भूल जाने का लेकिन इतना जल्दी किसी गलती को भूल जाना अंतरआत्म के लिए मुमकिन नहीं था | सुबह से शाम हो चुकी थी वो अभी भी उसी जगह बैठा था जहाँ वो थक्कर बैठ गया था उसके पास खाने को कुछ था नहीं इसलिए अपने गुस्से और अपने दिमाग में आने वाले ख्यालों को खा रहा था | बहुत सी बार ऐसा ही होता है हम कुछ नहीं खाते फिर भी मन भर जाता है और खाने का मन नहीं करता |

ख़ुद को खुश रखने के लिए कई बार उसने अपनी नींव भी टटोली लेकिन हर बार अंतरआत्मा की जीत हो रही थी और उसका मन मायूस हो रहा था | इस बार इंतज़ार था अंतरआत्मा से कोई अच्छा ख़याल उसकी तरफ आये और वो उसी ख़याल के सहारे उस गहराई से निकलना चाहता था जिसमे वो काफी घंटों से विचलित बैठा हुआ था | लेकिन अच्छी बात ये थी की उसका और उसकी अंतर आत्मा का ये वादा था की हर रोज़ रात होते होते वो और उसकी अंतरआत्मा साथ में बिस्तर के हवाले होंगे |

वो कहते है न भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं... रात होने से पहले उसकी अंतरआत्मा भी शायद थक चुकी थी उसकी खामोशी के आगे और वो तैयार थी उससे नज़र मिलाकर उसको सुकुन देने के लिए |

अंत भला तो सब भला |


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Tuesday, August 8, 2017

खुलकर जियो


वैसे तो कौन बकरा बकरी को चिड़ियाघर में रखता है, खेर बहुत दिनों के बाद बकरा देख कर अच्छा लगा बचपन याद आ गया |  हमारे घर के पड़ोस में रहने वाली चाची के यहाँ हमेशा बकरा बकरी रहते है | मुझे याद है उनके यहाँ एक बकरा था जो बहुत ही खूंखार और शैतान था उसे हमेशा बांध कर रखा जाता था और जब भी वो अगर गलती से खुल जाता तो 1-2 को घायल करके ही छोड़ता था |  शायद ज्यादा बंधे रहने से वो और ज्यादा खतरनाक हो गया था या फिर वो हमेशा के लिए खुल जाना चाहता था |

अक्सर ज्यादा बंधी हुई चीज़ें या तो खुद के लिए खतरनाक हो जाती है या कुछ अच्छा नहीं कर पाती | हमारे आसपास भी कई चीज़े होती है जो बंधी रहती है या खुले होते हुए भी खुलकर नहीं रह पाती कई बार समाज बाँध देता है कभी परिस्थितियाँ तो कभी हमारे साथ रहने वाले लोग |

ज़िन्दगी आपकी है... समय आपका है | खुलकर जिये, कभी किसी चीज़ से ना बंधे और नाही किसी को बांधे |

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