Monday, April 23, 2018

मैं ख़ुद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहता हूँ



थोड़ी देर के लिए मैं ख़ुद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहता हूँ  | ये बात कहते वक़्त वो इतना पीछे था की आगे आ भी जाता तब भी वो ख़ुद से पीछे ही रहता |  ठहर कर आस पास देखकर उसने कुछ समझना भी चाहा लेकिन बहुत सी चीज़े थी उसके ज़हन की तरफ आती हुई,  जिनसे वो लड़ रहा था | थकना लाज़मी था, वो बैठा और सोचता रहा लेकिन कुछ कर नहीं सका |

धीरे धीरे उसको ये बात समझ आ गयी थी की वक़्त तब ही ख़राब होता है जब आप या तो वक़्त से आगे निकलना चाहते या फिर वक़्त के पीछे रह जाओ, वक़्त के साथ साथ चलते रहना भी ज़िन्दगी की जीत है |

उसका मन दौड़कर जिस तरफ जाना चाहता था वहा भी वो नहीं था जिसे वो ढूंढ रह था ...जो भी हम ढूंढ रहे होते है वो जल्दी या देरी से नहीं वक़्त पर मिलता है |  उसकी अंतरआत्मा ने उसे काफी झंझोड़कर कर रखा हुआ था वो ख़ुद भी जानता था उससे गलती हुई है लेकिन हर वक़्त वो रास्ता ढूंढ रहा था उस गलती को मिटाने या भूल जाने का लेकिन इतना जल्दी किसी गलती को भूल जाना अंतरआत्म के लिए मुमकिन नहीं था | सुबह से शाम हो चुकी थी वो अभी भी उसी जगह बैठा था जहाँ वो थक्कर बैठ गया था उसके पास खाने को कुछ था नहीं इसलिए अपने गुस्से और अपने दिमाग में आने वाले ख्यालों को खा रहा था | बहुत सी बार ऐसा ही होता है हम कुछ नहीं खाते फिर भी मन भर जाता है और खाने का मन नहीं करता |

ख़ुद को खुश रखने के लिए कई बार उसने अपनी नींव भी टटोली लेकिन हर बार अंतरआत्मा की जीत हो रही थी और उसका मन मायूस हो रहा था | इस बार इंतज़ार था अंतरआत्मा से कोई अच्छा ख़याल उसकी तरफ आये और वो उसी ख़याल के सहारे उस गहराई से निकलना चाहता था जिसमे वो काफी घंटों से विचलित बैठा हुआ था | लेकिन अच्छी बात ये थी की उसका और उसकी अंतर आत्मा का ये वादा था की हर रोज़ रात होते होते वो और उसकी अंतरआत्मा साथ में बिस्तर के हवाले होंगे |

वो कहते है न भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं... रात होने से पहले उसकी अंतरआत्मा भी शायद थक चुकी थी उसकी खामोशी के आगे और वो तैयार थी उससे नज़र मिलाकर उसको सुकुन देने के लिए |

अंत भला तो सब भला |


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