नज़्म बेरुखी सी कहने लगा हूँ
दर्द अधिकतर अब सहने लगा हूँ
हम खुद को खुश क्या दिखाने लगे
करीबी बोले अब में जीने लगा हूँ
वक़्त क्यों नहीं लौटता वो पहले वाला
अब चरागों को छुपा कर में रहने लगा हूँ
अब ज़ेहन में छुपा लेती है खुद ज़िन्दगी
मैं खुद को पराया भी कहने लगा हूँ
नज़्म बेरुखी सी कहने लगा हूँ
दर्द अधिकतर अब सहने लगा हूँ
हम खुद को खुश क्या दिखाने लगे
करीबी बोले अब में जीने लगा हूँ
वक़्त क्यों नहीं लौटता वो पहले वाला
अब चरागों को छुपा कर में रहने लगा हूँ
अब ज़ेहन में छुपा लेती है खुद ज़िन्दगी
मैं खुद को पराया भी कहने लगा हूँ
नज़्म बेरुखी सी कहने लगा हूँ
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