Monday, August 8, 2011

कुछ किताबें

कुछ किताबों के पन्नो ने भी सुना है मुझे
मुझे यकीन है
एक दिन ये किताबें जँरूर लोगों को बतायेगीं
लोग भोचक्के रहे जायेगें, जिस दिन ये किताबें रोएंगी
वो रोते हुए आँसु नही मेरे एह्सास को झल्काँएगी
कुछ कहें या ना कहें तुम से लेकिन मेरा ज़िक्र जरुर कर जायेगी
कुछ किताबें आज भी सुनती है मुझें
कुछ किताबें आज भी रोती है मेरे एह्सास को देखकर
कुछ किताबें आज भी सोती है मेरे साथ
कुछ किताबों से नींद खरीदी है मेनें
मैं ज़िन्दाँ हुँ
© Copyright  rajnishsongara

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