आसमान को चिरती हवाई जहाँज की ये लखीरे रोज़ सुबह मुझे हिंदुस्तान ले जाती है । आसमान में बनती बिगड़ती ये सड़कें बिलकुल मेरे शहर की ओर जाने वाली टूटी फूटी सी सड़क जैसी है । हालाँकि शाम को लौटते वक़्त या तो ये ग़ायब हो जाती है या रास्ता बदल लेती है लेकिन रूकती नहीं, बिलकुल अपनी ज़िंदगी की तरह जो सिर्फ़ वक़्त के साथ रास्ते बदलती रहती है लेकिन रूकती नहीं है।
ख़ुशी मुझे इस बात की है की वो वक़्त भी आ जाएगा जब आसमान पर बनी इन सड़कों से होते हुए में अपने हिंदुस्तान लौटूँगा। पर याद रहे इन आसमान की सड़कों की तरह रास्ता बदलते रहना लेकिन कभी रुकना नहीं । पता नहीं ज़िंदगी की कौनसी सड़क आपको मंज़िल तक पहुँचा दे।
ख़ुशी मुझे इस बात की है की वो वक़्त भी आ जाएगा जब आसमान पर बनी इन सड़कों से होते हुए में अपने हिंदुस्तान लौटूँगा। पर याद रहे इन आसमान की सड़कों की तरह रास्ता बदलते रहना लेकिन कभी रुकना नहीं । पता नहीं ज़िंदगी की कौनसी सड़क आपको मंज़िल तक पहुँचा दे।
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