बदमाश गलियों में
आवारा घूमती ज़िन्दगी
कभी सुबह तो
कभी शाम
कुछ न कुछ
ढूढ़ती रहती है
बहुत वक़्त हो
गया
शाम में घर
को लौटे
लेकिन मज़ेदार बहुत है
कुछ ना कुछ
मिल जाता है
हर रोज़ राह
में चलते चलते
खुद को ज़िंदा
रखने के लिए
बदमाश गलियों में
आवारा घूमती ज़िन्दगी
© Copyright rajnishsongara
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