Friday, September 9, 2016

माँ

इक रोज़ देखा था सैलाब उसकी आँखों में
माँ की आँखों से गिरा एक आँसू ही काफी था |

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बुलंदी तक पहुँचाने का दम था उसकी दुआओ में,
जो चेहरे से बहुत गरीब नज़र आती है |

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ये भी क्या सलीखा है 'मुनव्वर', हर कोई भूल जाता है,
बस माँ ही है, जो कभी नहीं पूछती 'बेटे कितना कमाता है |

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मैंने कुछ कमाया तो नहीं 'मुनव्वर',
लेकिन दौलत का खजाना है मेरे पास,
जब भी मैं माँ से बात करता हूँ
वो बहुत खुश नज़र आती है |

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सिर्फ ये बात देखकर मुझे
हैरानी बहुत होती है
मैं जब तक खाना ना खालुँ
माँ नहीं सोती है |

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पल भर में मुझे
मेरी मिट्टी से जोड़ देती है
ये नज़्म मुझे, मेरे घर के
आँगन तक छोड़ देती है

मैं थोड़ा भी उडु ज़मीन से
तो मुझे उड़ने नहीं देती
बहुत रखती है बात दिल में
माँ कभी किसी से नहीं कहती |

© Copyright  rajnishsongara

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