Friday, September 9, 2016

कुछ नज़्म बेटियों पर

बांधो राख़ी तो इस बार, ये बात ज़रूर कह देना
इज़्ज़त लड़कियों की ना लुटे, भाईयो को सौगंध दे देना |

ख़ुश तो रहता है मगर
उसके आँसू नहीं रूकते
बाप अपनी बेटी विदा नहीं
अपनी उम्र पराई करता है

ना जाने क्यो,
अ‍ब तितलियाँ नही ठहरती मेरे घर के आँगन में
सब कुछ बदल जाता है बेटियों का आँगन बदलने से |


सिंधु जब साक्षी होगी कल के अख़बारों में,
बेटियाँ फिर नहीं जलेगी दहेज़ के बाज़ारों में |



© Copyright  rajnishsongara

(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

No comments:

Post a Comment