"दोस्ती देखी है हम ने
चांदनी की चांद से,
अन्धेरे की रात से,
पंछी की आकाश से,
पर खो जाती है चांदनी सवेरे की घात से
अन्धेरा भी चला जाता है दूर पलभर मे रात से
पंछी भी हो जाते है दूर धीरे-धीरे आकाश से
पर दोस्त मिले मुझे बेहद बे-नज़ीर
चाहे दिन हो या रात
चाहे दुर हो या पास
पर रहती है खुमारी उनकी मेरे हरपल साथ
जिन्दा है मेरी ज़िन्दगी, मेरे दोस्तो के साथ"
© Copyright rajnishsongara
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