"अब सोचना नही पडता मुझे कुछ लिखने को
आपका दीदार करता हूँ, कलम खुद-ब-खुद चल पडती है
बेश्क मेरा इमान गरीब है इस खेल मे
मगर मजबूर है कलम भी इस दीदार के आगे
नतीज़ा सामने है, इन्कार नही कर सकते
नही सोचा था मेरे सफ़र मे "गुलज़ार" भी होगे"
"अब देखा नही जाता
इस देख्नने को..
निगाहें-करम भी झुक जाते है
ये अफ़सून हे खुदा का
खुदा का फ़रीश्ता है ये अफ़साना"
© Copyright rajnishsongara
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