Wednesday, August 25, 2010

लगता है हम कुछ अपना भुलाय बेठै है

"ईश्वर की पनाह मे आँगन बिछोय बेठै है
कभी थन्डी थन्डी हवा से मुलाकात हो जाती है
तो कभी चिड्याँओ से भी बात हो जाती है
कभी आसमान के आँसुऔ से शरीर मचललेते है
तो कभी सुरज के साथ माहौल बना लेते है
फ़िर ऐसे मे दिन भर, दिनभर से हि तकरार होती है
य़ा फ़िर खुद से या ऊपर वाले से यहि गुहार होती है
इस पनाह को तु अपना बनाना कही
इस आँगन को तु सपना बनाना सही
फ़िर चाँदनी रात मे शबाब आता है
और ऊपर से यह जवाब आता है
ईश्वर कि पनाह मे आँगन बिछोय बेठै हो
कही मन्दिर कही गिर्जा तो कही मस्जिद बनाये बेठै हो
य़ु तो तुम हो इन्सांन पर इन्सानीयत भुलाय बेठै हो
लगता है हम कुछ अपना भुलाय बेठै है
ईश्वर के पनाह मे आँगन बिछोय बेठै है
ईश्वर के पनाह मे आँगन बिछोय बेठै है"
© Copyright  rajnishsongara

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